मेरा अस्तित्व
अंजुमन के उपवन में ,
उपवन के पौधों में ,
पौधों के फूलों में ,
मेरा अस्तित्वः
उस परागकण की भाँति है ।
जिसको स्वयं भवरें ,
न तो जानते हैं ,
न पहचानते हैं ।
है तो मेरा वजूद ,
इस माया पात्र में ,
इक अंश के बराबर ,
मगर मत भूलों ,
ऐ जहाँ वालों ,
मुझी से ये उपवन ,
हर पल महकाते हैं ,
हर पल मुस्कुराते हैं ।
संजय कुमार बंसल
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